"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-147 - Open Books Online2024-03-29T11:20:41Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/147?commentId=5170231%3AComment%3A1090557&feed=yes&xn_auth=noशुभरात्रिtag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10910682022-09-28T18:27:18.917ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>शुभरात्रि</p>
<p>शुभरात्रि</p> आदाब, भाई अशोक कुमार रक्ताले…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10909732022-09-28T18:24:47.739ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, भाई अशोक कुमार रक्ताले साहब, छोटी किन्तु अच्छी ग़ज़ल हुई है, हाँ 'मकता' मुझे दिखाई नहीं पड़ा ! इति</p>
<p>आदाब, भाई अशोक कुमार रक्ताले साहब, छोटी किन्तु अच्छी ग़ज़ल हुई है, हाँ 'मकता' मुझे दिखाई नहीं पड़ा ! इति</p> "ओबीओ लाइव तरही मुशाइर"अंक-14…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10908942022-09-28T18:23:21.179ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर"अंक-147 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार,व धन्यवाद ।</p>
<p>"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर"अंक-147 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक आभार,व धन्यवाद ।</p> नमस्कार, जयनित कुमार मेहता, …tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10910672022-09-28T18:19:24.028ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>नमस्कार, जयनित कुमार मेहता, आपकी ग़ज़ल प्रस्तुति मुझे काफी अच्छी लगी, बधाई !</p>
<p>नमस्कार, जयनित कुमार मेहता, आपकी ग़ज़ल प्रस्तुति मुझे काफी अच्छी लगी, बधाई !</p> आदरणीय रवि भाई जी 'कहियो' पाठ…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10909722022-09-28T18:15:52.929ZEuphonic Amithttp://openbooks.ning.com/profile/EuphonicAmit
<p>आदरणीय रवि भाई जी '<strong>कहियो</strong>' पाठकों को इसलिए खटक रहा है क्योंकि आपकी ग़ज़ल के <strong>मिज़ाज</strong> के साथ 'कहियो' फिट नहीं होता। ग़ज़ल का मिज़ाज समझना भी ज़रूरी है </p>
<p>मैं तक़ाबुल के साथ भी 'कहिए' के ही पक्ष में हूँ क्योंकि <strong>कहियो, कह दें, कह दो</strong> या किसी भी अन्य शब्द से मेरे लिए शेर का मज़ा ख़राब हो रहा है ।</p>
<p>आदरणीय रवि भाई जी '<strong>कहियो</strong>' पाठकों को इसलिए खटक रहा है क्योंकि आपकी ग़ज़ल के <strong>मिज़ाज</strong> के साथ 'कहियो' फिट नहीं होता। ग़ज़ल का मिज़ाज समझना भी ज़रूरी है </p>
<p>मैं तक़ाबुल के साथ भी 'कहिए' के ही पक्ष में हूँ क्योंकि <strong>कहियो, कह दें, कह दो</strong> या किसी भी अन्य शब्द से मेरे लिए शेर का मज़ा ख़राब हो रहा है ।</p> आदाब, श्रद्धेय समर कबीर साहब…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10909712022-09-28T18:15:04.487ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, श्रद्धेय समर कबीर साहब, आपने नाचीज की कोशिश पर इतनी ज़हमत की, इसके लिए आपका अशेष आभार ! उक्त इस्लाह का मैंने पूरा संज्ञान लिया है , भविष्य में इसका ध्यान रखूँगा । एक बार फिर आप का बहुत बहुत शुक्रिया , शुभ रात्रि !</p>
<p>आदाब, श्रद्धेय समर कबीर साहब, आपने नाचीज की कोशिश पर इतनी ज़हमत की, इसके लिए आपका अशेष आभार ! उक्त इस्लाह का मैंने पूरा संज्ञान लिया है , भविष्य में इसका ध्यान रखूँगा । एक बार फिर आप का बहुत बहुत शुक्रिया , शुभ रात्रि !</p> आदाब, मतला ज़रूर बदला जाना च…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10908052022-09-28T18:05:57.310ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, मतला ज़रूर बदला जाना चाहिए, जैसा कि आदरणीय समर कबीर साहब का निर्देश है, बाक़ी ग़ज़ल अच्छी हुई है! इति </p>
<p>आदाब, मतला ज़रूर बदला जाना चाहिए, जैसा कि आदरणीय समर कबीर साहब का निर्देश है, बाक़ी ग़ज़ल अच्छी हुई है! इति </p> आदाब, भाई तस्दीक अहमद साहब, …tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10908042022-09-28T18:02:07.621ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, भाई तस्दीक अहमद साहब, अपेक्षाकृत बेहतर ग़ज़ल हुई । मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ! </p>
<p>आदाब, भाई तस्दीक अहमद साहब, अपेक्षाकृत बेहतर ग़ज़ल हुई । मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ! </p> नमन, भाई अनिल कुमार सिंह मुझ…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10908932022-09-28T17:59:14.736ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>नमन, भाई अनिल कुमार सिंह मुझै आपकी ग़ज़ल काफी अच्छी लगी। आदरणीय समर कबीर साहब की बात का संज्ञान ले, बेहतर होगा। शुभ रात्रि !</p>
<p>नमन, भाई अनिल कुमार सिंह मुझै आपकी ग़ज़ल काफी अच्छी लगी। आदरणीय समर कबीर साहब की बात का संज्ञान ले, बेहतर होगा। शुभ रात्रि !</p> आदरणीय Dandpani Nahak जी, अच्…tag:openbooks.ning.com,2022-09-28:5170231:Comment:10910662022-09-28T17:54:49.495ZEuphonic Amithttp://openbooks.ning.com/profile/EuphonicAmit
<p style="text-align: left;">आदरणीय Dandpani Nahak जी, अच्छी ग़ज़ल की बधाई एवँ शुभकामनाएँ स्वीकार करें।</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><strong>सुझाव -</strong></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><strong>यक-ब-यक रोकिए न मुझ पे सितम</strong></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><strong>ले लिया इसने जुलम की जगह ज़ुल्म </strong></p>
<p style="text-align: left;"><strong> …</strong></p>
<p style="text-align: left;">आदरणीय Dandpani Nahak जी, अच्छी ग़ज़ल की बधाई एवँ शुभकामनाएँ स्वीकार करें।</p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><strong>सुझाव -</strong></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><strong>यक-ब-यक रोकिए न मुझ पे सितम</strong></p>
<p style="text-align: left;"></p>
<p style="text-align: left;"><strong>ले लिया इसने जुलम की जगह ज़ुल्म </strong></p>
<p style="text-align: left;"><strong> </strong></p>
<p style="text-align: left;"><strong> </strong></p>
<p style="text-align: left;"><strong> </strong></p>
<p style="text-align: right;"></p>