"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-146 - Open Books Online2024-03-29T08:42:49Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/146?commentId=5170231%3AComment%3A1088924&feed=yes&xn_auth=noसुस्वागतम् धामी जी ।tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10891142022-08-29T11:35:06.725Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>सुस्वागतम् धामी जी ।</p>
<p>सुस्वागतम् धामी जी ।</p> आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10890892022-08-29T11:29:00.842Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। मेरी कहन के समर्थन और समझाइस के लिए श्रेष्ठ शायरों को उद्धृत करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।</p>
<p>आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। मेरी कहन के समर्थन और समझाइस के लिए श्रेष्ठ शायरों को उद्धृत करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।</p> आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10888882022-08-29T11:26:34.671Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p>
<p>आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।</p> //दूसरे शेर में बुझे घाव शब्द…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10888872022-08-29T11:20:58.225Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//दूसरे शेर में बुझे घाव शब्द मुझे कुछ जचा नहीं क्योंकि घाव बुझता नहीं वरन् भरता है या हरा होता है।//</p>
<p>आदरणीय, शाइर का तख़ैय्युल, उपमा, अलंकार भी कोई चीज़ होती है या नहीं? घाव ही क्यों, क्या-क्या जल बुझ सकता है स्थापित शाइरों के कुछ शे'र कोट कर रहा हूँ, मुलाहिज़ा फ़रमाइये-</p>
<p></p>
<p>चंद क़तरे बिलकते अश्कों के</p>
<p>चंद फ़ाक़े <strong>बुझे हुए लब</strong> पर</p>
<p></p>
<p>करख़्त होने लगे हैं <strong>बुझे हुए लहजे</strong></p>
<p>मिरे मिज़ाज में शाइस्तगी के आने…</p>
<p>//दूसरे शेर में बुझे घाव शब्द मुझे कुछ जचा नहीं क्योंकि घाव बुझता नहीं वरन् भरता है या हरा होता है।//</p>
<p>आदरणीय, शाइर का तख़ैय्युल, उपमा, अलंकार भी कोई चीज़ होती है या नहीं? घाव ही क्यों, क्या-क्या जल बुझ सकता है स्थापित शाइरों के कुछ शे'र कोट कर रहा हूँ, मुलाहिज़ा फ़रमाइये-</p>
<p></p>
<p>चंद क़तरे बिलकते अश्कों के</p>
<p>चंद फ़ाक़े <strong>बुझे हुए लब</strong> पर</p>
<p></p>
<p>करख़्त होने लगे हैं <strong>बुझे हुए लहजे</strong></p>
<p>मिरे मिज़ाज में शाइस्तगी के आने से</p>
<p></p>
<p>ये <strong>बुझे जाम</strong> ये रोई हुई शमएँ न हटा</p>
<p>चंद घड़ियाँ ख़लिश-ए-ऐश-ए-गराँ रहने दे</p>
<p></p>
<p><strong>बुझे सूरज</strong> पे भी आँगन मिरा रौशन ही रहता है</p>
<p>दहकते हों अगर जज़्बे तो ताबानी नहीं जाती</p>
<p></p>
<p><strong>बुझे बुझे से सितारे</strong> थकी थकी सी निगाह</p>
<p>बड़ी उदास घड़ी है ज़रा ठहर जाओ</p>
<p></p>
<p>दमक रहा हूँ अभी तलक उस के ध्यान से मैं</p>
<p><strong>बुझे हुए इक ख़याल</strong> की रौशनी तो देखो</p>
<p></p>
<p>दिल-ए-परवाना पे क्या गुज़रेगी</p>
<p>जब तलक <strong>धूप बुझे</strong> शम्अ' जले</p>
<p></p>
<p>ये कैसे नुमू के सिलसिले हैं</p>
<p>शाख़ों पे <strong>गुलाब जल-बुझे हैं</strong></p>
<p></p>
<p>वही हुरूफ़ वही अपने बे-असर फ़िक़रे</p>
<p>वही <strong>बुझे हुए मौज़ूअ</strong>' और बयान वही</p>
<p></p>
<p>इतना सच बोल कि होंटों का <strong>तबस्सुम न बुझे</strong></p>
<p>रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा</p>
<p></p>
<p><strong>बुझे बुझे हुए दाग़-ए-जिगर</strong> की बात न कर</p>
<p>भड़क उठेगा ये शो'ला सहर की बात न कर</p>
<p></p>
<p><strong>हज़ार ज़ख़्म मिले फिर भी मुस्कुराते हुए</strong></p>
<p>गुज़र गया है कोई रास्ता बनाते हुए</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p> आदरणीय ऋचा यादव जी, तरही मिसर…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10891132022-08-29T11:02:29.865ZDayaram Methanihttp://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय ऋचा यादव जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। इस हेतु हार्दिक बधाई।</p>
<p>आदरणीय ऋचा यादव जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। इस हेतु हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10889962022-08-29T10:47:54.242Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन । उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन । उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए आभार।</p> आदरणीय अमीरुद्दीन ‘अमीर’ जी,…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10888852022-08-29T10:46:33.887ZDayaram Methanihttp://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
<p></p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन ‘अमीर’ जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।</p>
<p></p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन ‘अमीर’ जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।</p> आ. भाई अमित जी, सादर आभार।tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10888842022-08-29T10:46:31.402Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमित जी, सादर आभार।</p>
<p>आ. भाई अमित जी, सादर आभार।</p> आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिव…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10891102022-08-29T10:45:57.344Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। उत्साहवर्धन के लिए आभार।</p> आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-08-29:5170231:Comment:10888832022-08-29T10:44:46.961Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>