"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-145 - Open Books Online2024-03-29T10:01:11Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/145?commentId=5170231%3AComment%3A1087276&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय नमस्कार
ग़ज़ल का प्रयास…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10873032022-07-29T16:14:13.966ZRicha Yadavhttp://openbooks.ning.com/profile/RichaYadav
<p>आदरणीय नमस्कार</p>
<p>ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, लक्ष्मण जी से सहमत हूँ</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय नमस्कार</p>
<p>ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, लक्ष्मण जी से सहमत हूँ</p>
<p>सादर</p> आदरणीय त्रुटियों से अवगत करान…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10873022022-07-29T16:12:08.017ZRicha Yadavhttp://openbooks.ning.com/profile/RichaYadav
<p>आदरणीय त्रुटियों से अवगत कराने के लिये आभार आपका</p>
<p>सुधार का प्यास करती हूँ</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय त्रुटियों से अवगत कराने के लिये आभार आपका</p>
<p>सुधार का प्यास करती हूँ</p>
<p>सादर</p> आदरणीय आभार आपका
सादरtag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10873012022-07-29T16:10:11.465ZRicha Yadavhttp://openbooks.ning.com/profile/RichaYadav
<p>आदरणीय आभार आपका</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय आभार आपका</p>
<p>सादर</p> आदरणीय नमस्कार
अच्छी ग़ज़ल हुई,…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10874462022-07-29T16:09:50.548ZRicha Yadavhttp://openbooks.ning.com/profile/RichaYadav
<p>आदरणीय नमस्कार</p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार करें</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय नमस्कार</p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार करें</p>
<p>सादर</p> सादर अभिवादन स्वीकार करें आदर…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10874452022-07-29T15:49:56.653ZDINESH KUMAR VISHWAKARMAhttp://openbooks.ning.com/profile/DINESHKUMARVISHWAKARMA
<p>सादर अभिवादन स्वीकार करें आदरणीय। ग़ज़ल तक आने का शुक्रियः ।इस्लाह हेतु आभार </p>
<p>सादर अभिवादन स्वीकार करें आदरणीय। ग़ज़ल तक आने का शुक्रियः ।इस्लाह हेतु आभार </p> आ. भाई दिनेश जी सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10871772022-07-29T15:25:38.052Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दिनेश जी सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है किन्तु कुछ समय और देने से यह बेहतरीन हो सकती है क्योंकि कहीं कहीं गेयता बाधित हो रही है। प्रस्तुति व सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई दिनेश जी सादर अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है किन्तु कुछ समय और देने से यह बेहतरीन हो सकती है क्योंकि कहीं कहीं गेयता बाधित हो रही है। प्रस्तुति व सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई।</p> आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10873002022-07-29T15:18:58.741Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।</p> जी बहुत बहुत शुक्रियः आदरणीय।…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10873982022-07-29T12:56:47.623ZDINESH KUMAR VISHWAKARMAhttp://openbooks.ning.com/profile/DINESHKUMARVISHWAKARMA
<p>जी बहुत बहुत शुक्रियः आदरणीय।इस्लाह हेतु।आपको सादर प्रणाम।</p>
<p>जी बहुत बहुत शुक्रियः आदरणीय।इस्लाह हेतु।आपको सादर प्रणाम।</p> नमस्कार, दिनेश कुमार विश्वकर…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10874432022-07-29T12:54:03.028ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>नमस्कार, दिनेश कुमार विश्वकर्मा, आपका ग़ज़ल का प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा ! मतला थोड़ा संशोधन चाहता है, जिसकी पूर्ति ऊला में " मिरा" के स्थान पर 'मुझे' से हो जाएगी ! पाँचवे शे'र के सानी में, "तरकीब " को हटाकर 'मरहम जो' लगाने से शे'र कदाचित बेहतर अर्थवान हो जाएगा !सातवाँ शे'र "आज़ाद " हटाकर 'सय्याद " लगाने से अर्थवान हो जाएगा ! सुझाव मात्र है, आगे आपकी ,जनाब , मर्ज़ी। लेकिन अन्यथा बिल्कुल न लें !</p>
<p>नमस्कार, दिनेश कुमार विश्वकर्मा, आपका ग़ज़ल का प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा ! मतला थोड़ा संशोधन चाहता है, जिसकी पूर्ति ऊला में " मिरा" के स्थान पर 'मुझे' से हो जाएगी ! पाँचवे शे'र के सानी में, "तरकीब " को हटाकर 'मरहम जो' लगाने से शे'र कदाचित बेहतर अर्थवान हो जाएगा !सातवाँ शे'र "आज़ाद " हटाकर 'सय्याद " लगाने से अर्थवान हो जाएगा ! सुझाव मात्र है, आगे आपकी ,जनाब , मर्ज़ी। लेकिन अन्यथा बिल्कुल न लें !</p> आदाब, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफ…tag:openbooks.ning.com,2022-07-29:5170231:Comment:10873972022-07-29T12:23:42.256ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर, खूबसूरत गिरह के साथ बेहतरीन गज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें !</p>
<p>आदाब, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर, खूबसूरत गिरह के साथ बेहतरीन गज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें !</p>