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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ चालीसवाँ आयोजन है.   

 

पुनः इस बार का छंद है - सरसी छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

24 दिसम्बर 2022 दिन शनिवार से 

25 दिसम्बर 2022 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

सरसी छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 24 दिसम्बर 2022 दिन शनिवार से 25 दिसम्बर 2022 दिन रविवार तक, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

चित्र अपने माध्यम से 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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स्वागतम

जय-जय 

सादर अभिवादन।

सरसी छन्द
*********

स्वर्णिम आभा वाली मिट्टी, या फिर ये है रेत।
करने को निर्माण नया कुछ, ईंटें भी समवेत।।
बीहड़ में हैं चन्द झाड़ियाँ, नहीं एक भी खेत।
चित्र न खींचा सोचो क्योंकर, पूरे गाँव समेत।।
*
चार नारियाँ एक पुरुष है, बच्चे दिखते तीन।
पास भवन के खड़े हुए हैं जो है छत से हीन।।
मुखमण्डल के भाव बताते, जैसे हैं सब दीन।
लिए हाथ में  पर्चा  पीला, पढ़ने  में तल्लीन।।
*
छपा हुआ है  पर्चे  में  क्या, चित्र  न  देता ज्ञान।
हमको होगा स्वयं लगाना, इसका भी अनुमान।।
मनरेगा का काम छपा या, सरकारी अनुदान।
या नारी के लिए छपा है, साक्षरता अभियान।।
*
पुरुष पी रहा चाय  मजे  से, कहते कोई बात।
शायद जिससे बदलें इनके, बुरे सभी हालात।।
विद्यालय का भवन बनाने, करो श्रम दिन रात।
बाल पढ़ेंगे तब  आयेगी, खुशियों  की बरसात।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, चित्रानुकूल अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।

वाह वाह क्या बात कही है, देख चित्र श्रीमान 

रेशा-रेशा खीच दिया है, चाहे हो अनुमान ..

परियोजन का सार यही है, शिक्षित लोक सुजान

गाँव-गाँव हर चौक इलाके, रहे न जन अनजान 

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी चित्रानुरूप प्रस्तुति सर्वथा स्वागत योग्य है. 

हार्दिक बधाइयाँ .. 

शुभातिशुभ

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रस्तुति पर आपकी उपस्थिति और स्नेह से गदगद हूँ। हार्दिक आभार।

रचना पर आपकी उपस्थिति से मन को बेहतर लिखने का सम्बल मिलता है। और लिखे गये की कोटि भी ज्ञात होती है। आपका आशीष अन्य रचनाओं पर भी दृष्टगत होगा यही आस है। सादर...

  आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करता उत्तम अनुमान आपका. सभी छन्द उत्तम रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

सरसी छंद

स्वप्न सुनहरे लेकर आई, है कागज की कोर।
मुस्कान लिए देख रहे सब, मन नाच रहा मोर।
साक्षरता अभियान नहीं ये, है अजब समाचार।
सोच रहे ये परचा कैसा, क्या निकलेगा सार।

कमठाणे पर आया कोई, पूछे मन का हाल।
वोट दिलाने का व्यापारी, कहते जिसे दलाल।
कहता सबको उस नेता सा, देश में नहीं और।
चलो संग जुलूस में उसके, मिलेगा मस्त ठौर।

हवा चली अब ये है कैसी, वोट के लिये नोट।
सोच रहे सब क्या बोलें हम, मन में इसके खोट।
देना है जिसको उसको ही, देंगे अपना साथ।
बिकेगा नही वोट हमारा, जाने भोले नाथ।
- दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए है। और उसके नये पहलू को उजागर किया है। बहुत बहुत बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।

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