"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-121 - Open Books Online2024-03-29T09:45:28Zhttp://openbooks.ning.com/forum/topics/121-1?commentId=5170231%3AComment%3A1037116&feed=yes&xn_auth=noआ. भाई चेतन प्रकाश जी, अच्छी…tag:openbooks.ning.com,2020-11-15:5170231:Comment:10369612020-11-15T14:29:45.205Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई चेतन प्रकाश जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई चेतन प्रकाश जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> आ. भाई अरूण जी, रचना पर उपस्थ…tag:openbooks.ning.com,2020-11-15:5170231:Comment:10370312020-11-15T12:06:54.197Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अरूण जी, रचना पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई अरूण जी, रचना पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।</p> आ. बबीता बहन, अच्छी रचना हुई…tag:openbooks.ning.com,2020-11-15:5170231:Comment:10368042020-11-15T12:05:58.540Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. बबीता बहन, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. बबीता बहन, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> अतुकांत कविता.....
एक से इक्…tag:openbooks.ning.com,2020-11-15:5170231:Comment:10371162020-11-15T07:41:47.181ZChetan Prakashhttp://openbooks.ning.com/profile/ChetanPrakash68
<p>अतुकांत कविता.....</p>
<p></p>
<p>एक से इक्कीस</p>
<p>दीपावली की वेला है</p>
<p>एक से इक्कीस भले</p>
<p>दीप से दीप जले !</p>
<p>राजा से रंक भले</p>
<p>दुःख को समझते हैं</p>
<p>पड़ौसी का बारिश में उड़ा छप्पर</p>
<p>बालक ही उठा लाते हैं,</p>
<p>बड़ो के सहयोग से</p>
<p>दोबारा रखवाते हैं...!</p>
<p>आवारा है.....</p>
<p>पर गरीबों के मसीहा हैं,</p>
<p>बेचारे..........!</p>
<p>सूरज के निकलने से</p>
<p>धूप के उनसे मुँह चुराने तक</p>
<p>अमावस की कालिमा में</p>
<p>चिराग जलाते हैं ।</p>
<p>कोरोना के…</p>
<p>अतुकांत कविता.....</p>
<p></p>
<p>एक से इक्कीस</p>
<p>दीपावली की वेला है</p>
<p>एक से इक्कीस भले</p>
<p>दीप से दीप जले !</p>
<p>राजा से रंक भले</p>
<p>दुःख को समझते हैं</p>
<p>पड़ौसी का बारिश में उड़ा छप्पर</p>
<p>बालक ही उठा लाते हैं,</p>
<p>बड़ो के सहयोग से</p>
<p>दोबारा रखवाते हैं...!</p>
<p>आवारा है.....</p>
<p>पर गरीबों के मसीहा हैं,</p>
<p>बेचारे..........!</p>
<p>सूरज के निकलने से</p>
<p>धूप के उनसे मुँह चुराने तक</p>
<p>अमावस की कालिमा में</p>
<p>चिराग जलाते हैं ।</p>
<p>कोरोना के अंतहीन गहरे अँधियारें में</p>
<p>भूखे नंगे मीलों चलकर थके - हारे मजबूर</p>
<p>प्यासे........</p>
<p>वन्देमातरम गाते हैं....</p>
<p>सूखे कुँए में छलाँग लगाते हैं,</p>
<p>आँखों से औझल हो जाते है...</p>
<p>एक से शुरु हो इक्कीस तक,</p>
<p>मानव-श्रंखला बन जाती है.....</p>
<p>तब कही जाकर सरकार जाग पाती है।</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p> कुछ् रचनाये भाव से इतनी भारी…tag:openbooks.ning.com,2020-11-14:5170231:Comment:10370232020-11-14T14:30:23.639ZDR ARUN KUMAR SHASTRIhttp://openbooks.ning.com/profile/DRARUNKUMARSHASTRI
<p>कुछ् रचनाये भाव से इतनी भारी होती है कि स्वतः ब ह्ती है पढनी नही पडती // आपकी ये रचना भी ऐसी ही है </p>
<p></p>
<p>कुछ् रचनाये भाव से इतनी भारी होती है कि स्वतः ब ह्ती है पढनी नही पडती // आपकी ये रचना भी ऐसी ही है </p>
<p></p> बेहतरीन लक्ष्मण जी बहुत खूबसू…tag:openbooks.ning.com,2020-11-14:5170231:Comment:10369562020-11-14T14:27:22.121ZDR ARUN KUMAR SHASTRIhttp://openbooks.ning.com/profile/DRARUNKUMARSHASTRI
<p>बेहतरीन लक्ष्मण जी बहुत खूबसूरत </p>
<p>बेहतरीन लक्ष्मण जी बहुत खूबसूरत </p> गजल
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
छोड़ कर…tag:openbooks.ning.com,2020-11-14:5170231:Comment:10370202020-11-14T14:06:06.665Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>गजल</p>
<p><br></br>२१२२/२१२२/२१२२/२१२</p>
<p><br></br>छोड़ कर रिश्ते ज़माना एक से इक्कीस हो<br></br>भर रहा केवल ख़जाना एक से इक्कीस हो।१।<br></br>*<br></br>सादगी रिश्ते न छोड़े तो सयाना मैं नहीं <br></br>दे दिया उस ने भी ताना एक से इक्कीस हो।२।<br></br>*<br></br>काम वैसे है सियासत का जगाना नेह पर<br></br>भा गया नफरत उगाना एक से इक्कीस हो।३।<br></br>*<br></br>जब तलक पायी नहीं सँस्कार की तालीम ये<br></br>कब हुआ मानव सयाना एक से इक्कीस हो।४।<br></br>*<br></br>स्वर्ण की नगरी बसायी बस हवस के वास्ते<br></br>है किसे यह स्वर्ण खाना एक से इक्कीस…</p>
<p>गजल</p>
<p><br/>२१२२/२१२२/२१२२/२१२</p>
<p><br/>छोड़ कर रिश्ते ज़माना एक से इक्कीस हो<br/>भर रहा केवल ख़जाना एक से इक्कीस हो।१।<br/>*<br/>सादगी रिश्ते न छोड़े तो सयाना मैं नहीं <br/>दे दिया उस ने भी ताना एक से इक्कीस हो।२।<br/>*<br/>काम वैसे है सियासत का जगाना नेह पर<br/>भा गया नफरत उगाना एक से इक्कीस हो।३।<br/>*<br/>जब तलक पायी नहीं सँस्कार की तालीम ये<br/>कब हुआ मानव सयाना एक से इक्कीस हो।४।<br/>*<br/>स्वर्ण की नगरी बसायी बस हवस के वास्ते<br/>है किसे यह स्वर्ण खाना एक से इक्कीस हो।५।<br/>*<br/>दीप से जुड़ दीप रचते हैं यहाँ दीपावली<br/>पर मनुज ने गुर न जाना एक से इक्कीस हो।६।<br/>*<br/>मौलिक व अप्रकाशित</p> अतुकांत कविता
बदलाव की दरका…tag:openbooks.ning.com,2020-11-14:5170231:Comment:10367922020-11-14T12:58:37.046Zbabitaguptahttp://openbooks.ning.com/profile/babitagupta631
<p>अतुकांत कविता </p>
<p></p>
<p>बदलाव की दरकार.....</p>
<p>कठिन समय संत्रास-त्रासदी भरा</p>
<p>घिर आई दुःख की कारी बदरिया</p>
<p>उमंगों,उत्साह,प्रेम से रीता जीवन</p>
<p>भावहीन होकर मौन हो गया</p>
<p>हताशाभरी राहें,दहशत ने डेरा डाला</p>
<p>चपेटता मन को आशंकाओं भरा तूफान</p>
<p>समय मांगता,नव शैली सृजन कर</p>
<p>कोरे जीवन के आसमान के केनवास पर</p>
<p>उम्मीद की कड़कती दामिनी से रौनक देकर</p>
<p>अनुरामयी नीर मेघों से हर्षोल्लास की बारिश से</p>
<p>खुशहाली का इंद्र्धनुष निर्मित कर</p>
<p>थम गया जो…</p>
<p>अतुकांत कविता </p>
<p></p>
<p>बदलाव की दरकार.....</p>
<p>कठिन समय संत्रास-त्रासदी भरा</p>
<p>घिर आई दुःख की कारी बदरिया</p>
<p>उमंगों,उत्साह,प्रेम से रीता जीवन</p>
<p>भावहीन होकर मौन हो गया</p>
<p>हताशाभरी राहें,दहशत ने डेरा डाला</p>
<p>चपेटता मन को आशंकाओं भरा तूफान</p>
<p>समय मांगता,नव शैली सृजन कर</p>
<p>कोरे जीवन के आसमान के केनवास पर</p>
<p>उम्मीद की कड़कती दामिनी से रौनक देकर</p>
<p>अनुरामयी नीर मेघों से हर्षोल्लास की बारिश से</p>
<p>खुशहाली का इंद्र्धनुष निर्मित कर</p>
<p>थम गया जो अनवरत जीवनक्रम.......</p>
<p>सुप्त विचारों को कर उद्धेलित</p>
<p>जाग्रत कर अन्तर्मन के मृतप्राय संघर्ष को</p>
<p>लक्षयप्राप्ति में अश्वदौड़ का धावक बन ....</p>
<p>तभी जीवन की शाश्वता सिद्ध होगी........</p>
<p>सार्थक होगा निरर्थक जीवन........</p>
<p>बदलाव की दरकार हैं......</p>
<p>समझदारी से पग-पग आगे बढ़कर....</p>
<p>परिलक्षित हुये बुझे ज्ञान से गुलजार कर.....</p>
<p>ठहरी साँसों में नव ऊर्जा संचरित कर</p>
<p>जीवन को नया आयाम देने का......</p>
<p>अपनत्व का रंग बिखेरने का.......</p>
<p>एक नया अस्तित्व गढ़ने का......</p>
<p></p>
<p>स्वरचित व अप्रकाशित ।</p>
<p></p>
<p>बबीता गुप्ता </p>
<p></p> अस्तगामी सूर्य ,समेटते किरणें…tag:openbooks.ning.com,2020-11-14:5170231:Comment:10370102020-11-14T09:54:19.540ZKanak Harlalkahttp://openbooks.ning.com/profile/KanakHarlalka
<p>अस्तगामी सूर्य ,<br/>समेटते किरणें ,<br/>चिन्तित बड़ा था ..<br/>सन्मुख<br/>विजय गर्व मत्त<br/>खिलखिलाताअन्धेरा <br/>खड़ा था....<br/>तभी .<br/>दीपक एक<br/>जल उठा<br/>किसी कुटीर द्वार से ...<br/>अंधेरे को जैसे पस्त करता<br/>सूर्य को आश्वस्त करता<br/>निश्चिंत जाओ ,प्रियवर<br/>दायित्व तेरा मेरी धरोहर ,<br/>राह को खोने न दूंगा ,<br/>मैं अंधेरा होने न दूंगा ,<br/>ज्योति की ज्वाला उठाए ,<br/>कल सुबह तक "मैं "जलूंगा ...।।।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>अस्तगामी सूर्य ,<br/>समेटते किरणें ,<br/>चिन्तित बड़ा था ..<br/>सन्मुख<br/>विजय गर्व मत्त<br/>खिलखिलाताअन्धेरा <br/>खड़ा था....<br/>तभी .<br/>दीपक एक<br/>जल उठा<br/>किसी कुटीर द्वार से ...<br/>अंधेरे को जैसे पस्त करता<br/>सूर्य को आश्वस्त करता<br/>निश्चिंत जाओ ,प्रियवर<br/>दायित्व तेरा मेरी धरोहर ,<br/>राह को खोने न दूंगा ,<br/>मैं अंधेरा होने न दूंगा ,<br/>ज्योति की ज्वाला उठाए ,<br/>कल सुबह तक "मैं "जलूंगा ...।।।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p> ओ बी ओ लाइव महोत्सव में आपकी…tag:openbooks.ning.com,2020-11-14:5170231:Comment:10368942020-11-14T08:34:58.295ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>ओ बी ओ लाइव महोत्सव में आपकी प्रतीक्षा है ....</p>
<p>ओ बी ओ लाइव महोत्सव में आपकी प्रतीक्षा है ....</p>