परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 117वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जलील ’आली’ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"एक दिन में कहाँ अंदाज़-ए-नज़र बनता है "
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन मख्बून मक्तुअ )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जनाब Khan Hasnain Aaqib साहिब, वाह वाह
मतला सुन्दर है,
वक़्त बदले तो हर एक ज़ेर ज़बर बनता है
आम को चूस के खाना भी ख़बर बनता है।
बाक़ी आदरणीय समर साहिब की बात. सादर.
गझल
वक़्त बदले तो हर एक ज़ेर ज़बर बनता है
आम को चूस के खाना भी ख़बर बनता है।
मुद्दतें लगती हैं, सीपी में गुहर बनता है
देर से ही सही आकिब ये मगर बनता है।
घर की तामीर में होती है मुहब्बत पिनहाँ
कौन कहता है कि दीवारों से घर बनता है ।
ऊंचे महलों ने भला किस को अता की है हयात
सोच ऊंची हो तो इंसान अमर बनता है।
ख़ून को अश्क करूँ, तेरे हवाले कर दूं
इतना हक़ मुझ पे तेरा दी-द-ए तर बनता है।
सिर्फ़ शानों पे तो पुतलों के रखा होता है
तेरी सरकार में झुक जाय तो सर बनता है।
धीरे धीरे ही तो पकते हैं दरख़्तों पर फल
'एक दिन में कहाँ अंदाज़-नज़र बनता है।
पेश क़दमी से है मशरुत हुसूले मंज़िल
जुमबिशे पा के तसलसुल से सफ़र बनता है।
मौलिक व अप्रकाशित
जनाब ख़ान हसनैन आक़िब साहिब आदाब, तरही मिसरे पर आपने उम्द: और मुरस्सा ग़ज़ल कही, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के दोनों मिसरों में 'बर' की बंदिश हो रही है,देखियेगा ।
'सिर्फ़ शानों पे तो पुतलों के रखा होता है
तेरी सरकार में झुक जाय तो सर बनता है'
इस शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ कुल्ली ऐब है,देखियेगा ।
आदरणीय बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें ।
पर बर की बंदिश हो गई है
सादर
आदरणीय खान हसनैन आक़िब जी आदाब बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें ! वाह बहुत खूब !
2122 1122 1122 22
1
जीस्त का यूँ ही नहीं कवर बनता है
आजकल झूठ से ही एक बशर बनता है
2
उलझनें रोज़ नये अक्स में लिपटी आतीं
रोज़ अख़बार इन्हीं से ख़बर बनता है
3
क्या किसी को है पता ख़ुशियाँ किधर रहतीं हैं
उसके खोने से मेरे दिल में भँवर बनता है
4
भूलना माज़ी को बेहतर है उसे छोड़ो वहीं
दफ़्न करने से ही खुशियों का शजर बनता है
5
स्याह बालों की सफ़ेदी ही बताती है हमें
*एक दिन में कहाँ अंदाज़ ए नज़र बनता है*
6
ज़िन्दगी ख़त्म नहीं होती कभी कहने से
हर नई राह पे चलने से सफ़र बनता है
मौलिक व अप्रकाशित
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई सवीकार करें ।
'जीस्त का यूँ ही नहीं कवर बनता है'
इस मिसरे में लगता है,एक शब्द लिखने से रह गया है,इसलिए बह्र में नहीं है ।
'रोज़ अख़बार इन्हीं से ख़बर बनता है'
इस मिसरे में शायद 'तो' शब्द लिखने से रह गया है,मिसरा बह्र में नहीं,देखिये ।
समर सर के लिए मैसेज
आदरणीय समर sir ये रचना जी की तरफ़ से है। किसी तकनीकी दिक्कत के कारण वो यहां reply नहीं दे पा रहीं हैं। मैं उनको ओर से सबको धन्यवाद करती हूँ और आप तक उनका ये मैसेज पहुँचा रही हूँ। सादर
आदरणीय समर कबीर सर ग़ज़ल तक आने के लिए तथा इस्लाह करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सर आपने सही कहा कुछ शब्द लिखने रह गए हैं
यूँ ही नहीं ' यारो ' तथा
तो रह गया था । जल्दबाजी में ग़ज़ल पोस्ट करने के लिए क्षमा चाहती हूँ ।।
सर, लगातार कोशिश के बावजूद रिप्लाई सैंड नहीं हो रहा है।
आदरणीयाअंजलि गुप्ता 'सिफ़र जी मेरा संदेश पहुंचाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
आदरणीया रचना जी ,बहुत अच्छी ग़ज़ल।हुई
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