समाज - Open Books Online2024-03-29T01:01:28Zhttp://openbooks.ning.com/forum/categories/5170231:Category:43679/listForCategory?categoryId=5170231%3ACategory%3A43679&feed=yes&xn_auth=noविश्व में एक और ‘नन्हा भारत’- मारीशस -- डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्तवtag:openbooks.ning.com,2015-06-24:5170231:Topic:6674882015-06-24T10:10:08.519Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p> <span style="color: #000000;"> वैज्ञानिक मान्यता है कि पृथ्वी की चलायमान “प्लेट्स” के कारण समुद्रतल से ज्वालामुखी-विस्फोट के फलस्वरूप सैकड़ो द्वीप बने I आज से लगभग 80 लाख वर्ष पहले ऐसी ही एक घटना से यह द्वीप अस्तित्व में आया I मॉरीशस मास्कारेने द्वीप समूह का एक हिस्सा है । इस द्वीपसमूह की शृंखला उन अंत:समुद्री ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण बनी है जो अब सक्रिय नहीं हैं । यह ज्वालामुखीय विस्फोट अफ्रीकी प्लेट के रीयूनियन तप्तबिन्दु के ऊपर सरकने के कारण हुए थे । यह द्वीप एक केंद्रीय…</span></p>
<p> <span style="color: #000000;"> वैज्ञानिक मान्यता है कि पृथ्वी की चलायमान “प्लेट्स” के कारण समुद्रतल से ज्वालामुखी-विस्फोट के फलस्वरूप सैकड़ो द्वीप बने I आज से लगभग 80 लाख वर्ष पहले ऐसी ही एक घटना से यह द्वीप अस्तित्व में आया I मॉरीशस मास्कारेने द्वीप समूह का एक हिस्सा है । इस द्वीपसमूह की शृंखला उन अंत:समुद्री ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण बनी है जो अब सक्रिय नहीं हैं । यह ज्वालामुखीय विस्फोट अफ्रीकी प्लेट के रीयूनियन तप्तबिन्दु के ऊपर सरकने के कारण हुए थे । यह द्वीप एक केंद्रीय पठार के चारों ओर बना है, जिसकी उच्चतम चोटी पितोन डे ला पेतित रिवियेरे नोयेरे </span><span style="color: #000080;">828 मीटर (2717 फुट) उंची है और इसके दक्षिण मे स्थित है । पठार के आसपास<font face="Calibri">,</font> मूल गर्त पहाड़ों से अलग दिखाई पड़ता है। यह अफ्रीका महाद्वीप के समुद्री तट से दक्षिण पूर्व में लगभग 900 कि0मी0 की दूरी पर हिन्द महासागर में और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित एक स्वतंत्र द्वीप है I वर्तमान मारीशस गणराज्य (<font face="Calibri">Republic of Mauritius</font>) में मारीशस द्वीप के अतिरिक्त जो अन्य द्वीप शामिल है वे सेंट बेंडन, राडी गंज और अगालेगा हैं । माँरीशस से मात्र 176 कि0मी0 पश्चिम में स्थित रेनिओ (<font face="Calibri">REUNION</font>) द्वीप में आज भी ज्वालामुखी फूटता है I मारीशस का कुल क्षेत्रफल 2040 कि0मी0 है और आबादी मात्र 13 लाख के आस-पास है I आबादी के बारे आश्चर्यजनक और अनुकरणीय बात यह है कि माँरीशस की आबादी प्रायशः स्थिर है I इससे सारी विश्व को सबक लेना चाहिए I भौगोलिक दृष्टि से माँरीशस भारत के गोवा तट से यह लगभग 4500 कि0मी0 दूर दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है I</span></p>
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<p> मारिशस का प्रमाणिक इतिहास 10वी शताब्दी के अभिलेखों से मिलना प्रारम्भ होता है I अभिलेखीय आधार पर ऐसा माना जाता है कि 1507 ई0 में सबसे पहले इस निर्जन द्वीप में पुर्तगाली नाविकों का प्रवेश हुआ और उन्होंने यहाँ अपना एक अड्डा बनाया I लेकिन वे यहाँ रहे नहीं I संभवतः यह स्थान उन्हें भाया नहीं I अतः वे इसे छोड़कर चले गए I संयोग से हालैंडवासी डच जो अपने तीन पोत लेकर मसाला द्वीप (Spice Island) की यात्रा पर निकले थे वे समुद्री चक्रवात में फंस गए और अपना रास्ता भूल बैठे I वे भटकर इस द्वीप में आ गये I उन्होंने इस द्वीप का नाम अपने नासाओ के युवराज मारिस के नाम एवं सम्मान में मारीशस रखा I इन लोगो ने 1638 ई0 में यहाँ अपने स्थाई उपनिवेश स्थापित किये I यहाँ समुद्री चक्रवात आते रहते थे I यहाँ की उष्णकटिबंधीय जलवायु डचों के अनुकूल नही थी और तूफ़ान से बस्तियां उजड़ जाती थे अतः डचों ने कुछ दशक तक यहाँ रहकर इसे छोड़ दिया I मारीशस के निकटवर्ती द्वीप द्वीप रियूनियन (जो अब मारीशस गणराज्य में है) पर उस समय फ्रांसीसियों का अधिकार था i उन्होंने द्वीप को निर्जन पाकर 1715 ई0 में इस पर अधिकार कर लिया और सका नाम बदलकर ‘आईल द फ़्रांस’ (Isle the France) रख दिया i उन्होंने यहाँ की अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ की और चीनी का वृहत उद्योग स्थापित किया I यह आर्थिक परिवर्तन गवर्नर (राज्यपाल) फ्रेंकायेश माहे दे लेबाडानाईस के द्वारा शुरू किया गया था।</p>
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<p><font size="3"> <span class="font-size-2">उस समय फ़्रांस का ब्रिटेन से संघर्ष चल रहा था और कई सैनिक झडपें हो चुकी थी I इधर समुद्र में गैरकानूनी घोषित जलदस्यु "कोर्सेर्स" का बोलबाला था i ब्रिटेन के विरोध में फ़्रांस ने इन जल्दस्युओ को न केवल अभय प्रदान किया अपितु उन्हें शरण भी दी दी I <font face="Times New Roman"> </font>ये जलदस्यु ब्रिटिश जहाजो को जिन पर मूल्यवान व्यापार का माल लदा होता था उन्हें भारत और ब्रिटेन के मध्य होने वाली यात्राओं के दौरान लूट लेते थे । किन्तु सन् 1803-1815 के दौरान </span></font></p>
<p>नेपोलियन से हुए युद्धों मे अंग्रेज इस द्वीप का नियंत्रण पाने मे सफल हो गये । फ्रांसीसियों ने 3 दिसम्बर 1810 को कुछ शर्तों के साथ औपचारिक समर्पण कर दिया I प्रमुख शर्त यह थी कि द्वीप पर फ्रांसीसी भाषा का प्रयोग जारी रहेगा और आपराधिक मामलों में नागरिकों पर फ्रांस का कानून लागू होगा। अंग्रेजों ने <font face="Times New Roman"> </font>इस द्वीप का नाम बदलकर फिर से मॉरीशस कर दिया ।</p>
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<p> सन् 1965 ई0 में <font face="Times New Roman"> </font>ब्रिटेन (यूनाइटेड किंगडम) ने छागोस द्वीपसमूह को सामरिक महत्व के कारण मॉरीशस से अलग कर दिया । उन्होने ऎसा ब्रिटिश हिन्द महासागर क्षेत्र स्थापित करने के लिये किया ताकि वे इन द्वीपों का प्रयोग संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग के विभिन्न प्रयोजनों के लिए कर सकें । हालाँकि मॉरीशस की तत्कालीन सरकार उनके इस कदम से सहमत थी पर बाद की सरकारों ने उनके इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध करार दिया और इन द्वीप समूहों पर अपना अधिकार भी जताया । मजे की बात यह है कि उनके इस दावे को संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी मान्यता मिल गयी है और यह भी भारत-चीन सीमा विवाद की तरह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है I</p>
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<p> मॉरीशस ने 1968 ई0 में स्वाधीनता प्राप्त की और कामनवेल्थ देशों की श्रेणी में 1992 मे एक डेमोक्रटिक रिपब्लिक बना । सम्प्रति, मॉरीशस एक स्थाई लोकतंत्र है जहाँ नियमित रूप से स्वतंत्र चुनाव होते हैं और मानवाधिकारों के मामले मे भी देश की छवि अच्छी है I आजादी के बाद से मारीशस एक निम्न आय वाली<font face="Times New Roman">,</font> कृषि उत्पाद आधारित अर्थव्यवस्था से विकसित होकर एक विविधतापूर्ण मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था मे परिवर्तित हो गया है I यहाँ प्रतिवर्ष काफी विदेशी निवेश होता है तथा गन्ना बागान, टूरिज्म और कपडा व्यवसाय यहाँ की आय का बड़ा श्रोत है I यह देश अफ्रीका महाद्वीप में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय (<font face="Times New Roman">Per Capita Income)</font> वाले देशों मे से एक है।</p>
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<p><font size="3"><span class="font-size-2"><font face="Times New Roman" size="3"><font face="Times New Roman" size="3"> </font> </font></span></font> मॉरीशस स्वादिष्ट व्यंजनों के लिया विख्यात है जो भारतीय, चाइनीज, क्रेयोल और यूरोपियन खानों के योग से बनता है I यहाँ रम का उत्पादन व्यापक स्तर पर होता है I कहा जाता है किपियरे चार्ल्स फ्रेंकोयेज हरेल नाम का कोई व्यक्ति था जिसने 1850 में मॉरीशस में रम के स्थानीय आसवन का प्रस्ताव किया था ।</p>
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<p> मॉरीशस का स्थानीय लोक संगीत सेंगा है I मूलतः यह अफ्रीकन संगीत है I इसमें पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग करते है जिनमे ‘रेवानो’ प्रमुख है i इसे बकरी की खाल से बनाया जाता है I आमतौर पर सेगा करुण गीत है जिनमे गुलामी के दिनों के अत्याचार की पीड़ा का वर्णन होता है I इन गीतों मे आजकल के दौर मे अश्वेतों की सामाजिक समस्याओं को भी उठाया जाता है । आमतौर पर पुरुष वाद्य बजाते हैं और महिलायें नृत्य करती हैं। तटीय क्षेत्र के होटलों में ये शो नियमित रूप से आयोजित किये जाते है ।</p>
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<p> मॉरीशस का राष्ट्रीय प्रतीक एक अप्राप्य पक्षी ‘डोडो’ है I यह पक्षी कभी इस देश में बहुतायत से पाया जाता था I यह देखने में बहुत सुन्दर था किन्तु यह चतुर नहीं था I इसीलिये इसे ‘डोडो’ कहा गया जिसका शाब्दिक अर्थ है- मूर्ख I इस पक्षी का मांस बहुत स्वादिष्ट था और यही इसके सर्वनाश का कारण बना i जंगली सूअरों ने भी इनके घोसले उजाड़े I 1681 ई0 तक यह प्रजाति विलुप्त हो चुकी थी I इसके कंकाल संग्रहालयों मे संरक्षित हैं I</p>
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<p> मॉरीशस के दर्शनीय स्थलों में पोर्ट लूइस (Port Louis)और वहां स्थित बोटोनिकल गार्डन (<font face="Calibri">Pamplemousses Garden and SSR Botanical Garden</font>), ब्लैक रीवर गार्गेज नेशनल पार्क (Black River Gorges National Park), आइल अक्स सर्फेस आईलैंड (Île aux Cerfs Island), ग्रैंड बेसिन (<font face="Calibri">Grand Bassin</font>),चामेरल पार्क्स एंड फाल्स (Chamarel park - 7 colored earth & Chamarel falls) आइल आक्स ऐग्रेटिस (<font face="Calibri">Ile aux Aigrettes</font> ) यूरेका केरोल हाउस (<font face="Calibri">UEREKA CREOLE HOUSE</font> ) नाट्री डैम आक्जलरी ट्राईस (<font face="Calibri">NOTRY DAME AUXILIATRICE</font> ) ब्लू पेनी म्यूजियम <font face="Calibri">BLUE PENNY MUSEUM</font>) अप्रवासी घाट <font face="Calibri"> </font>(<font face="Calibri">APRAVASEE GHAT</font>) एवं माँरीशस का डोमेन लेस पैलेस (<font face="Calibri">DOMAINE LESS PAILLES IN MAURITIUS</font> ) आदि प्रमुख हैं I</p>
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<p> मॉरीशस को नन्हा भारत, मिनी इंडिया या छोटा हिन्दुस्तान कहते है I इसके कई कारण है i प्रथम तो यह कि भारत की भांति कभी यह भी अंग्रेजों का उपनिवेश था I भारत की भांति यह स्वतंत्र हुआ I भारत की तरह यह भी कामन- वेल्थ देश समूह का एक सदस्य है I भारत की ही भांति मारीशस का संविधान अंग्रेजों के संविधान से अनुप्राणित है I भारत की ही तर्ज पर वहां भी डेमोक्रटिक रिपब्लिक है I मारीशस में भी सरकारी काम काज की भाषा अंग्रेजी है पर भारत की भांति वहां की जनप्रिय भाषा हिन्दी है I भारत की भाँति ही यह भी हिन्दू बहुल देश है और उनके रीति-रिवाज भी भारत जैसे हैं I होली, दीवाली, दशहरा और रामलीला वहां भी लोग धूम-धाम से मानते हैं I यहाँ तक की उनकी पूजा पद्धति भी भारत से मिलती है I हिन्दी भाषी को वहां अपार सम्मान मिलता है I मारीशस में भारतीय को सब कुछ अपना सा लगेगा भाषा, खानपान, धार्मिक रीति-रिवाज और यहां तक कि संस्कार भी बिलकुल भारतीय हैं । मंदिरों में बजते घंटे, रहने के तौर-तरीके और पारंपरिक भारतीय वेशभूषा देखकर लगता है कि मारीशस सचमुच में मिनी इंडिया है I यहां घरों और मंदिरों में विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ होता है। पंडित-पुरोहित विविध संस्कारों को अत्यंत शुद्धता के साथ संपन्न कराते हैं। भारतीय मूल के लोग अपने तीज-त्योहारों के मामले में आज भी सभी परंपराओं का निर्वाह करते हैं ।</p>
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<p> दक्षिण भारतीय समुदाय के लोग यहां मकर संक्रांति के अवसर पर पड़ने वाले ‘पोंगल’ को उत्साह्पूर्वक मनाते हैं। यहाँ उन सभी रीति-रिवाजों का वैसा ही निर्वाह होता है जैसा भारत में किया जाता है । लगभग दो सौ वर्ष पूर्व जब भारतीय यहां पहुंचे, तो उन्होंने इसे ‘मारीच देश’ कहा । रामायण की अनुगूंज आज भी यहां भारतीयों की आस्था का प्राकट्य कराती है। मानस की चौपाइयां यहां कष्ट में फंसे लोगों के लिए उसी प्रकार संजीवनी बूटी का काम करती हैं जैसे कि भारत में I भारतीय उत्पाद्य के साथ ही टेलीविजन पर भारतीय धार्मिक कार्यक्रमों का एक बड़ा दर्शक वर्ग मॉरीशस में है । यहां भारतीय विषयों पर न सिर्फ गांव और गलियों के नाम रखे गए हैं, अपितु सिनेमाघरों, दुकानों, बसों तक के नाम नालंदा, सूर्यवंशी, बनारस, सम्राट अशोक तथा अजंता आदि रखे जाते हैं। भारतीय सांस्कृतिक संदर्भो में यहां डाक टिकट भी जब-तब निकलते रहे हैं । घरों की बनावट में भी भारतीय वास्तुकला का पूरा ध्यान रखा जाता है । कहते है कि प्रसिद्द कथाकार मार्क ट्वेन जब मारीशस गए तो वहाँ भारतीयता का बोलबाल देखकर उनसे रहा नहीं गया I उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा - भगवान ने पहले मॉरीशस बनाया होगा, फिर उसकी नकल पर स्वर्ग का निर्माण किया होगा, पर इस बंजर भूमि को स्वर्ग बनाने वाले उन महान भारतीयों को कभी भुलाया नहीं जा सकता जिन्होंने खुद की आहुति देकर अपने मूल्यों को बचाए रखा।</p>
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<p> हनुमान जी मॉरीशस में हिन्दुओं के आदर्श हैं I आज भी मारीशस मे हर हिन्दू के आंगन में एक चबूतरे पर उनकी मूर्ति लहराती लाल पताका के साथ दिखती है । भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब उनकी समूची जीवन शैली में भास्वर दिखता है। चाहे कोई रस्म या संस्कार हो, चाहे गर्भाधान, <a title="पुंसवन संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">पुंसवन</a>, <a title="सीमन्तोन्नयन संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">सीमन्तोन्नयन</a>, <a title="जातकर्म संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">जातकर्म</a>, नामकरण, <a title="निष्क्रमण संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%A3_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">निष्क्रमण</a>, <a title="अन्नप्राशन संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">अन्नप्राशन</a>, चूड़ाकरण, <a title="कर्णवेध संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A7_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">कर्णवेध</a>, <a title="उपनयन संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">उपनयन</a>, <a title="केशान्त संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">केशान्त</a>, <a title="समावर्तन संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">समावर्तन</a> एवं <a title="विवाह संस्कार" href="http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0">विवाह</a> सभी जगह भारतीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का पूरी तन्मयता से पालन किया जाता है । ललना गीत, सोहर, विवाह-गीत और नृत्य सभी कुछ भारतीय रंग में होता है I हाईटेक होती संस्कृति के बीच शादी-विवाह के रंग-ढंग भले ही कुछ बदल गए हों, पर प्रीतिभोज आज भी केले के पत्तों पर पूड़ी व साग-सब्जी के साथ ही होता है। माटी कोड़ाई, इमली घोटाई, कंगना खिलाई, तिलक, हल्दी से लेकर अग्नि के भांवर आदि रस्मों का निर्वाह भारतीय संस्कृति और पद्धति के अनुरूप ही होता है। गांवों में बिरहा और हरपरौरी जैसे लोक-गीत सुनने को मिलते हैं । मॉरीशस की युवा पीढ़ी फ्रेंच और अंग्रेजी गाने सुनती तो है, पर उनकी प्राथमिकताएं हिंदी, भोजपुरी गीत और उर्दू की गजलें हैं, जिन्हें वे अनुराग सहित गुनगुनाते हैं I</p>
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<p> इस प्रकार हम देखते है कि अंग्रेज जिन भारतीयों को बंधक बनकर ले गये और जिन्हें उस समय ‘गिरमिटिया’ कहा जाता है, उन्होंने भारत से हजारों मील दूर एक छोटे से टापू नुमा देश में भारतीयता को न केवल जीवित रखा है अपितु उसका नित संवर्धन भी हो रहा है, जिसके दम पर मारीशस नन्हा भारत कहा जाता है I</p>
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<p align="center"> ई एस-1/436, सीतापुर रोड योजना कालोनी</p>
<p align="center"> अलीगंज सेक्टर –ए , लखनऊ </p>
<p>(मौलिक व अप्रकाशित )</p>
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<p></p> भारत ही नहीं विश्व पूजित है नाग-देवता - डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तवtag:openbooks.ning.com,2014-07-13:5170231:Topic:5587032014-07-13T08:43:49.231Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooks.ning.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
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<p> भारतवर्ष में नाग-पंचमी एक महत्वपूर्ण लोक-पर्व है I पौराणिक मान्यता के अनुसार हमारी पृथ्वी सहस्रफणी शेषनाग अर्थात सर्पराज वासुकि के फन पर अवस्थित है I वासुकि को हम भगवान विष्णु की शैय्या के रूप मे भी जानते है I यह जब धरती सँभालने के लिए फन बदलते है तब धरती काँप उठती है, इसी को भूकंप कहते है I लोक विश्वास के अनुसार श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन सर्प किसी व्यक्ति को नहीं काटते I ब्रह्माजी ने इसी दिन मानव जाति को वरदान दिया था कि जो इस लोक में नाग पूजा करेगा या उनकी…</p>
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<p> भारतवर्ष में नाग-पंचमी एक महत्वपूर्ण लोक-पर्व है I पौराणिक मान्यता के अनुसार हमारी पृथ्वी सहस्रफणी शेषनाग अर्थात सर्पराज वासुकि के फन पर अवस्थित है I वासुकि को हम भगवान विष्णु की शैय्या के रूप मे भी जानते है I यह जब धरती सँभालने के लिए फन बदलते है तब धरती काँप उठती है, इसी को भूकंप कहते है I लोक विश्वास के अनुसार श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन सर्प किसी व्यक्ति को नहीं काटते I ब्रह्माजी ने इसी दिन मानव जाति को वरदान दिया था कि जो इस लोक में नाग पूजा करेगा या उनकी रक्षा करेगा उसको कालभय, अकालमृत्यु, विषजन्य, सर्पदोष या कालसर्प दोष और सर्पदंश का भय नहीं रहेगा । आस्तिक मुनि ने भी पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी, तभी नागपंचमी की यह तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है । इसलिए इस दिन लोग निर्भय होकर किसी निभृत स्थान पर जहां सर्प के निवास की सम्भावना होती है, जैसे बाम्बी या बांसो की जड़े, चंपा अथवा चन्दन आदि सुगन्धित पौधो व पेड़ो के पास दूध ,खीर अथवा लावा आदि सपात्र रखकर नाग देवता का स्मरण करते है और प्रार्थना करते है कि वे मनुष्य की पूजा एवं अर्चना को स्वीकार करे I ऐसा कर लोग उस स्थान से चले जाते है ताकि एकांत पाकर नाग देवता आये और पूजा स्वीकार करे I कालांतर में जब व्यक्ति पात्र वापस लेने जाते है तो उन्हें पात्र प्रायशः खाली मिलते है तब उनमे यह विश्वास दृढ होता है की उनकी पूजा स्वीकार कर ली गयी है I जिनके पात्र खाली नहीं होते वह यह मानते है कि नागदेवता उनसे संतुष्ट नहीं है I उत्तर भारत में नाग पंचमी के दिन मनसा देवी की पूजा करने का विधान भी है I देवी मनसा को नागों की देवी माना गया है, इसलिये बंगाल, उडीसा और अन्य क्षेत्रों में मनसा देवी के दर्शन व उपासना का कार्य किया जाता है I दक्षिण में इस दिन शुद्ध तेल से स्नान किया जाता है तथा वहां अविवाहित कन्याएं उपवास रख, मनोवांछित जीवन साथी की प्राप्ति की कामना करती है I किसी-किसी के तो कुल देवता ही नाग होते है I हिन्दू कायस्थों मे अठ्ठैसा खानदान के कुल देवता नाग ही है I पर अब नागर सभ्यता के विकास के साथ ही साथ लोग इन पुरानी मान्यताओं को भूलते जा रहे है I नाग-पंचमी के दिन नाग का दर्शन परम शुभ माना जाता है I इसीलिये लोक-भावनाओ का लाभ उठाने के लिए अनेक संपेरे नाग- पंचमी के दिन बीन बजाते हुए यत्र-तत्र विचरण किया करते है I इस दिन इनकी अच्छी कमाई हो जाती है I</p>
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<p> भारत में अनेक ऐसे स्थल भी है जहाँ नाग-पंचमी के दिन हजारो सर्प स्वतः प्रकट होकर मनुष्यों और उनके बच्चो के साथ खेलते रहते है I इन दो विरोधी जीवो का पारस्परिक सद्भाव और आमोद –प्रमोद देखकर सहसा विश्वास करना कठिन हो जाता है कि ये आपस में सहज शत्रु है I रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने कुरुक्षेत्र मे लिखा है –</p>
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<p> ‘जा भाग, मनुज के सहज शत्रु मित्रता न मेरी पा सकता I</p>
<p> मै किसी हेतु भी यह कलंक अपने पर नहीं लगा सकता II’</p>
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<p> आश्चर्य की बात यह भी है कि वही सर्प अगले दिन खोजने पर भी नहीं मिलते I</p>
<p> नागजाति का वैदिक युग में बहुत लंबा इतिहास रहा है I अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, घृतराष्ट, शंखपाल, कालिया, तक्षक और पिंगल भारत के प्राचीन प्रख्यात सर्पो के नाम है I सर्पो का विश्रुत इतिहास भारत से लेकर चीन तक फैला है । चीन में आज भी ड्रैगन यानी महानाग की पूजा होती है और उनका राष्ट्रीय चिन्ह भी यही ड्रैगन है । नाग पूजा केवल चीन या भारत में होत्ती हो ऐसी बात नहीं है I विश्व के अनेक देशो में विधान-वैविध्य से इनकी पूजा होती है I दक्षिण अमेरिका के रेड इंडियन वर्ष में एक दिन सर्पो की पूजा करते है I वे सर्पो के संभावित निवास स्थान के समीप जाकर चावल के दाने गिराते है I यह एक प्रकार का संकेत या निमंत्रण है, जिसके द्वारा सर्पो को पूजा-स्थल पर आने की सूचना दी जाती है I पर्व के दिन हजारो सर्प इस पत्थर के पास आकर एकत्र होते है I रेड इंडियन्स इनको निर्भय होकर पकड़ते है और उन्हें मक्के के दाने की बनी हुयी खीर खिलाते है I यह द्रश्य बड़ा ही रोमांचक एवं लुभावना होता है I हजारो नागो के बीच मनुष्य को हँसते-खेलते देखकर आश्चर्य होता है I सर्प भी नाना प्रकार के खेल दिखाते है, नृत्य करते है और फन लहराकर प्रेम प्रकट करते है I अमेरिका निवासी गोरी प्रजाति के लोग इस उत्सव में भाग नहीं लेते I किन्तु वे इस अद्भुत द्रश्य को देखने के लिए अपनी कारो या सवारी के अन्य साधनों से पूजा स्थल पर पहुँचते है और दिनमान इस द्रश्य का आनंद उठाते है I सूर्यास्त के बाद सभी सर्प अपने स्थान को चले जाते है I यह क्रम हजारो साल से यथावत चला आ रहा है , किन्तु सर्पो से रेड इंडियंस को आज तक कोई छति नहीं हुयी है I</p>
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<p> नेपाल में नाग को वर्षा और समृद्धि का देवता माना जाता है । जापान में भी सर्प को वर्षा का देवता मानते हैं । अफ्रीका में तो नागपूजा की परंपरा आज भी विद्यमान है । पुराने जमाने में वहाँ नाग को प्रसन्न करने के लिए भेड़-बकरियों की बलि भी दी जाती थी। स्कॉटलैंड के अनेक प्राचीन स्मारकों में हमें सर्प की आकृतियां बनी हुई मिलती हैं । आयरलैंड में 17 मार्च को प्रति वर्ष संत-सर्प-दिवस मनाया जाता है । रोम में आज भी वर्ष में एक बार नाग पूजा का महोत्सव मनाया जाता है , जिसमें कुमारी कन्याएं सर्पों को जौ के आटे से बना केक खिलाती हैं । यदि सांप उस केक को खा ले तो इसे बड़े सौभाग्य का संकेत माना जाता है । मिस्र में सर्पों की देवताओं के समान पूजा की जाती थी । वहाँ के मंदिरों की दीवारों पर नागों की आकृतियां अंकित की जाती थीं तथा कुछ विशेष प्रकार के सर्पों को उनकी मृत्यु के बाद उनकी ममी बना कर दफनाया भी जाता था। ' ईजो ' नामक नाग को तो वहां बुद्धि का देवता माना जाता था। नील नदी के रक्षक भी सर्प ही समझे जाते थे । इटली तथा सिसली में भी कुछ स्थानों पर नागपूजन किया जाता है । स्वीडन में 16 वीं शताब्दी तक नागों का गृह देवता के रूप में पूजन किया जाता था । अमेरिका में कोलंबस के समय नागपूजा प्रचलित थी । एक मान्यता के अनुसार अमेरिका के ओहियो नामक राज्य में नाग-संप्रदाय के लोग निवास करते थे । पोलैंड में भी प्राचीन काल में नागपूजा का त्यौहार राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता था। ऑस्ट्रेलिया में मान्यता है कि एक बड़े नाग ने जब अपनी पूंछ को झटका दिया , तभी इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई। भारत के समान ऑस्ट्रेलिया के धार्मिक ग्रंथों में ऐसा वर्णन है कि उसी बड़े नाग के हिलने-डुलने से भूकंप आते हैं। पुराने जमाने में वहां नाग की प्रतिमा पर हाथ रख कर शपथ लेने का भी रिवाज था। । श्रीलंका , कंबोडिया , जावा तथा फिजी आदि देशों में भी नागपूजा की काफी लंबी परंपरा रही है , जो संभवत: बौद्ध धर्म के साथ फैली।</p>
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<p> नागो के सम्बन्ध में सबसे रोचक घटना ग्रीक द्वीप सीफालोनिया के मार्कोपोलो एवं अर्जीनिया नामक गाँव के पास की है i यहाँ हाली स्नैक (Holy snake) नामक एक गिरिजाघर है I इसमें वर्जिन मेरी के दिन अर्थात 6 अगस्त को हजारो अनाहूत सर्प एकत्र होते है और गिरिजाघर में स्थित मूर्ति का दर्शन करते है I यह सभी सर्प मूर्ति के चरणों में दस दिन तक लोटते रहते है I पंद्रह अगस्त के दिन इनका अभियान पूरा होता है I इसके बाद वे यथा स्थान वापस चले जाते हैं I यह विलक्षण घटना भी प्रतिवर्ष नियमित रूप से घटित होती है I इस अवधि मे कोई भी व्यक्ति गिरिजाघर में जाकर यह द्रश्य देख सकता है क्योंकि वे सर्प आगंतुको की ओर जरा भी ध्यान न देकर अपने कार्य में संलग्न रहते है I वहां के लोगो ने इस घटना की फिल्मे भी तैयार की है ताकि जिज्ञासु लोग उन्हें देखकर सच्चाई स्वीकार कर सके I</p>
<p></p>
<p> इसमें संदेह नहीं कि सर्पो का संसार विचित्र है और ये बड़े ही धर्म-प्रिय और ज्ञानी जीव है I दक्षिण भारत में सडको के किनारे लठ्ठवत पूँछ के बल खड़े होकर सूर्य की आराधना करते हुए इन्हें मैंने स्वयं देखा है और यह आराधना वे सूर्यमुखी फूल की तरह दिनमान सूर्य की ओर मुख रखते हुए करते है I इनके सम्बन्ध में अनेक कहानिया प्रसिद्ध है i सर्प कन्याओ तक की कल्पना है I ये बहुजीवी होते है और प्राचीन हो जाने पर उड़ते है , आदि अनेक किस्से है I किन्तु यह भी मनुष्य से डरते है और कभी आक्रमण की पहल नहीं करते I कभी -कभी अनजाने में यदि उनके शरीर का कोई हिस्सा मनुष्य के पैर आदि से दबता है तब वे प्रतिक्रिया स्वरुप दंशन करते है I यह मनुष्य ही है जो सर्प के नाम से भय खाता है i इसीलिये हम इन्हें काल-रज्जु भी कहते हैं I वैज्ञानिक कहते है कि दूध सर्प के लिए जहर है फिर वैदिक काल से इन्हें दूध और खीर खिलाने की परम्परा क्यों है यह प्रश्न ऊहात्मक है और इस पर व्यापक शोध व विचार की आवश्यकता है I</p>
<p> </p>
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<p> </p>
<p> ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना</p>
<p> सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I</p>
<p> मो0 9795518586</p>
<p> (मौलिक व अप्रकाशित )</p>
<p> </p> होली मनाएं हम (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा)tag:openbooks.ning.com,2014-03-16:5170231:Topic:5218232014-03-16T12:51:57.832ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p>होली मनाएं हम <br></br> ------------------<br></br> हर वर्ष की तरह इस बार भी आपका अंगना होली हेतु तैयार है। घर की साफ़ सफाई , लिपाई -पुताई, हो चुकी है. करीने से सामान सुरक्षित कर दिया गया है. विभिन्न कारणों से घर से बाहर गए स्वजन त्यौहार में घर लौट चुके हैं. अपरिहार्य परिस्थितियों में अवकाश न मिलने या अन्य कारणों से जिनके स्वजन नहीं आ पा रहे हैं उनके परिजनों के अन्तः पीड़ा , व्यथा को घर के कोने और आंखो के कोने की नमी महसूस किये बिना कौन रह सकता है। <br></br> कुछ घर ऐसे भी हैं जिनके यहाँ इस वर्ष गमी की…</p>
<p>होली मनाएं हम <br/> ------------------<br/> हर वर्ष की तरह इस बार भी आपका अंगना होली हेतु तैयार है। घर की साफ़ सफाई , लिपाई -पुताई, हो चुकी है. करीने से सामान सुरक्षित कर दिया गया है. विभिन्न कारणों से घर से बाहर गए स्वजन त्यौहार में घर लौट चुके हैं. अपरिहार्य परिस्थितियों में अवकाश न मिलने या अन्य कारणों से जिनके स्वजन नहीं आ पा रहे हैं उनके परिजनों के अन्तः पीड़ा , व्यथा को घर के कोने और आंखो के कोने की नमी महसूस किये बिना कौन रह सकता है। <br/> कुछ घर ऐसे भी हैं जिनके यहाँ इस वर्ष गमी की होली मनायी जायेगी जिनके परिवार के सदस्य कभी वापस नही लौटेंगे, कारण कुछ मौतें शराब के कारण सडक दुर्घटना होना, जहरीली शराब से मौतें. आपसी झगड़े इत्यादि। <br/> क्या त्यौहार बगैर नशे संभव नही। <br/> शुरुआत होती है होली की लकडियों के चंदा एकत्रित होने से लेकर होलिका दहन तक , एकत्रित चंदे से कुछ हिस्सा जाता है नशे हेतु. <br/> कई दिन पहले से ही नशे की सामग्री इकठी करते हैं, बड़े शान से. <br/> दुष्परिणामों से भली भाँती परिचित हैं फिर भी चेतते नही हैं?<br/> नशे के कारण अकाल मौत के अगले शिकार आप तो नही ?<br/> दूसरे की असावधानी से आप सुरक्षित कब तक ?<br/> क्या इसे हम नियंत्रित नहीं कर सकते ?<br/> क्या कोरे कागज़ पर सन्देश देने से बदलाव आ जायेगा। <br/> क्या कर सकते है आप ?<br/> १. आत्म नियंत्रण <br/> २. परिवार के सदस्यों पर नियंत्रण <br/> ३. पड़ोसियों से नशे के दुष्परिणामो पर गहन चर्चा /परिचर्चा <br/> ४. कम से कम मोहल्ले के ३ व्यक्तियों से चर्चा कर नशा विरोधी माहौल बनाना. इसी प्रकार ये तीन व्यक्ति ३-३ सदस्यों को नशे के विरोध में कार्य करने हेतु तैयार करें.<br/> ५. मोहल्ले के सभी सदस्य नशा न करने और इसके दुष्परिणामों से ज्यादा से ज्यादा लोगों को अवगत करने का संकल्प लें. <br/> ६. समूह में गाये जाने वाले फाग /आयोजित कवि सम्मेलनों में नशा विरोधी गीतों /चर्चा का समावेश किया जाय। <br/> ७. स्वविवेक। <br/> होली की हार्दिक शुभ कामनाये <br/> प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा <br/> मौलिक /अप्रकाशित</p> चौपाल: सार्वजानिक घटनाएँ और हमारा आचरणtag:openbooks.ning.com,2013-01-09:5170231:Topic:3074052013-01-09T12:31:11.282Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p>चौपाल:<br></br><br></br>सार्वजानिक घटनाएँ और हमारा आचरण</p>
<p>ज्योति सिंह पांडे (छद्म नाम दामिनी) प्रकरण के साथ प्रेस, नागरिकों, नेताओं और पुलिस के असंयमित आचरण की कई बानगियाँ सामने आईं। <br></br><br></br>हर चैनेल ने तथ्य पर चटपटेपन से परोसने को वरीयता दी। जन सामान्य को भड़काकर सड़क पर उतार दिया गया। किसी चैनेल ने यह अपील नहीं की कि लोग गवाह बनें, पुलिस को सबूत जुटाने में मदद दें या ऐसे प्रकरण होने पर तुरंत सहायता दें। बाद में भुक्तभोगी ने यह बताया की उन्हें बस से फेंके जाने के बाद भी लंबे समय तक किसी ने…</p>
<p>चौपाल:<br/><br/>सार्वजानिक घटनाएँ और हमारा आचरण</p>
<p>ज्योति सिंह पांडे (छद्म नाम दामिनी) प्रकरण के साथ प्रेस, नागरिकों, नेताओं और पुलिस के असंयमित आचरण की कई बानगियाँ सामने आईं। <br/><br/>हर चैनेल ने तथ्य पर चटपटेपन से परोसने को वरीयता दी। जन सामान्य को भड़काकर सड़क पर उतार दिया गया। किसी चैनेल ने यह अपील नहीं की कि लोग गवाह बनें, पुलिस को सबूत जुटाने में मदद दें या ऐसे प्रकरण होने पर तुरंत सहायता दें। बाद में भुक्तभोगी ने यह बताया की उन्हें बस से फेंके जाने के बाद भी लंबे समय तक किसी ने सहायता नहीं दी, न अस्पताल ले जाने की पहल दी। दुर्घटनाग्रस्त का तमाशा देखना, तत्काल मदद न देना और फिर शासन-प्रशासन के विरुद्ध सड़क पर उतर कर कानून हाथ में लेना ... पुलिस की कठिनाई बढ़ाना, पिटना और चैनलों के लिए मसाला जुटाने का औजार बनना कितना उचित था? सोचें ... क्या भविष्य में भी ऐसा ही आचरण हो या कुछ बदले? <br/><br/>समाचारों के अतिरेकी प्रसारण से पूरा वातावरण दूषित हुआ ... सामान्य की अपेक्षा हर दिन दुराचार के समाचारों में अत्यधिक वृद्धि दिख रही है। क्या यह अकस्मात् है? प्रेस दिल्ली के बाहर की घटनाओं को उतना महत्त्व क्यों नहीं देता? आरक्षण आन्दोलन के समय प्रेस द्वारा अतिरेकी समाचार लगातार देने का परिणाम छात्रों द्वारा लगातार दाह के रूप में सामने आया था। मनोवैज्ञानिकों ने दाह की घटनाओं का कारण कमजोर मानसिकता के छात्रों पर ऐसे समाचारों का बताया था ... तदनुसार दुराचार के लगातार अतिरेकी समाचारों का परिणाम कमजोर मानसिकता के लोगों का समान कर्म करने की और प्रवृत्त होने के रूप में सामने आ रहा है। प्रेस का काम घटना की सूचना देना है या जन सामान्य को किसी दिशा विशेष की ओर मोड़ना? यदि प्रेस द्वारा प्रसारित सामग्री से प्रेरित होकर लोग राष्ट्रीय संपत्ति को हानि पहुंचाते है तो क्या इसकी जिम्मेदारी प्रेस पर नहीं होना चाहिए? <br/><br/>आपात काल में नेताओं को समाज का पथ प्रदर्शक होना चाहिए या राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति करते हुए बयान देना चाहिए? कश्मीर में आतंकवाद, संसद में हमला,<br/>बंबई बम कांड या दिल्ली की घटना ... कभी भी कोई भी नेता देश या समाज के हित में दलगत राजनीति को छोड़कर जनता का मार्ग दर्शन नहीं करता। इस दिशा हीनता का कारण दलीय पद्धति है तो क्या दलविहीन राजनैतिक प्रणाली नहीं लाई जाना चाहिए?<br/><br/>पुलिस पर थानों में अपराध संख्या घटाने के लिए दबाब क्यों होना चाहिए? जनसँख्या बढ़ने के साथ अपराध बढ़ेंगे ही। अपराधों के संधान और न्याययालय से अपराधियों को शीघ्र सजा दिलाने के प्रकरणों की संख्या के आधार पर पुलिस कर्मियों को पदोन्नति मिले तो दिया जाना ठीक नहीं होगा क्या?<br/><br/>और अंत में पीड़ितों का नाम छिपाने के सम्बन्ध में ... पीडिता के दिवंगत होजाने के बाद भी नाम को छिपाए जाने का कोई कारण समझ में नहीं आता। परिवारजनों के न चाहने पर भी नाम छिपाया गया जबकि एक विदेशी समाचार स्रोत ने असली नाम सामने ला दिया। इसी तरह अपराधियों में से हिन्दू अपराधियों के नाम बताये गए, मुसलमान अपराधी का नाम छिपाया गया जबकि सर्वाधिक बर्बरतापूर्ण आचरण उसी का है। अब उसे किशोर कह कर कम से कम सजा की दिशा में प्रकरण को ले जाया जा रहा है। क्या यह उचित है? <br/><br/>सभी से निवेदन है की उक्त बिन्दुओं पर गंभीरता से सोचकर अपना मत व्यक्त करें ताकि सभी को एक-दूसरे से दिशा मिल सके। <br/><br/></p> विचार-विमर्श नारी प्रताड़ना का दंड? संजीव 'सलिल'tag:openbooks.ning.com,2012-12-19:5170231:Topic:3021442012-12-19T14:58:24.505Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p><br></br>विचार-विमर्श <br></br>नारी प्रताड़ना का दंड?<br></br>संजीव 'सलिल'<br></br>*<br></br>दिल्ली ही नहीं अन्यत्र भी भारत हो या अन्य विकसित, विकासशील या पिछड़े देश, भाषा-भूषा, धर्म, मजहब, आर्थिक स्तर, शैक्षणिक स्तर, वैज्ञानिक उन्नति या अवनति सभी जगह नारी उत्पीडन एक सा है. कहीं चर्चा में आता है, कहीं नहीं किन्तु इस समस्या से मुक्त कोई देश या समाज नहीं है. <br></br><br></br>फतवा हो या धर्मादेश अथवा कानून नारी से अपेक्षाएं और उस पर प्रतिबन्ध नर की तुलना में अधिक है. एक दृष्टिकोण 'जवान हो या बुढ़िया या नन्हीं सी गुडिया, कुछ…</p>
<p><br/>विचार-विमर्श <br/>नारी प्रताड़ना का दंड?<br/>संजीव 'सलिल'<br/>*<br/>दिल्ली ही नहीं अन्यत्र भी भारत हो या अन्य विकसित, विकासशील या पिछड़े देश, भाषा-भूषा, धर्म, मजहब, आर्थिक स्तर, शैक्षणिक स्तर, वैज्ञानिक उन्नति या अवनति सभी जगह नारी उत्पीडन एक सा है. कहीं चर्चा में आता है, कहीं नहीं किन्तु इस समस्या से मुक्त कोई देश या समाज नहीं है. <br/><br/>फतवा हो या धर्मादेश अथवा कानून नारी से अपेक्षाएं और उस पर प्रतिबन्ध नर की तुलना में अधिक है. एक दृष्टिकोण 'जवान हो या बुढ़िया या नन्हीं सी गुडिया, कुछ भी हो औरत ज़हर की है पुड़िया' कहकर भड़ास निकलता है तो दूसरा नारी संबंधों को लेकर गाली देता है. <br/><br/>यही समाज नारी को देवी कहकर पूजता है यही उसे भोगना अपना अधिकार मानता है. <br/><br/>'नारी ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया' यदि मात्र यही सच है तो 'एक नहीं दो-दो मात्राएँ नर से भारी नारी' कहनेवाला पुरुष आजीवन माँ, बहन, भाभी, बीबी या कन्या के स्नेहानुशासन में इतना क्यों बंध जाता है 'जोरू का गुलाम कहलाने लगता है. <br/><br/>स्त्री-पीड़ित पुरुषों की व्यथा-कथा भी विचारणीय है. <br/><br/>घर में स्त्री को सम्मान की दृष्टि से देखनेवाला युअव अकेली स्त्री को देखते ही भोगने के लिए लालायित क्यों हो जाता है? <br/><br/>ऐसे घटनाओं के अपराधी को दंड क्या और कैसे दिया जाए. इन बिन्दुओं पर विचार-विमर्श आवश्यक प्रतीत होता है. आपका स्वागत है.</p> आकलन:अन्ना आन्दोलन भारतीय लोकतंत्र की समस्या और समाधान: --- संजीव 'सलिल'tag:openbooks.ning.com,2011-08-29:5170231:Topic:1368072011-08-29T02:49:58.147Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
<p><strong>आकलन:अन्ना आन्दोलन</strong></p>
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<p><strong>भारतीय लोकतंत्र की समस्या और समाधान:</strong></p>
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<p>-- संजीव 'सलिल'</p>
<p>*</p>
<p>अब जब अन्ना का आन्दोलन थम गया है, उनके प्राणों पर से संकट टल गया है यह समय समस्या को सही-सही पहचानने और उसका निदान खोजने का है.</p>
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<p>सोचिये हमारा लक्ष्य जनतंत्र, प्रजातंत्र या लोकतंत्र था किन्तु हम सत्तातंत्र, दलतंत्र और प्रशासन तंत्र में उलझकर मूल लक्ष्य से दूर नहीं हो गये हैं क्या? यदि हाँ तो समस्या का निदान आमूल-चूल…</p>
<p><strong>आकलन:अन्ना आन्दोलन</strong></p>
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<p><strong>भारतीय लोकतंत्र की समस्या और समाधान:</strong></p>
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<p>-- संजीव 'सलिल'</p>
<p>*</p>
<p>अब जब अन्ना का आन्दोलन थम गया है, उनके प्राणों पर से संकट टल गया है यह समय समस्या को सही-सही पहचानने और उसका निदान खोजने का है.</p>
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<p>सोचिये हमारा लक्ष्य जनतंत्र, प्रजातंत्र या लोकतंत्र था किन्तु हम सत्तातंत्र, दलतंत्र और प्रशासन तंत्र में उलझकर मूल लक्ष्य से दूर नहीं हो गये हैं क्या? यदि हाँ तो समस्या का निदान आमूल-चूल परिवर्तन ही है. कैंसर का उपचार घाव पर पट्टी लपेटने से नहीं होगा.</p>
<p> </p>
<p>मेरा नम्र निवेदन है कि अन्ना भ्रष्टाचार की पहचान और निदान दोनों गलत दिशा में कर रहे हैं. देश की दुर्दशा के जिम्मेदार और सुख-सुविधा-अधिकारों के भोक्ता आई.ए.एस., आई.पी.एस. ही अन्ना के साथ हैं. न्यायपालिका भी सुख-सुविधा और अधिकारों के व्यामोह में राह भटक रही है. वकील न्याय दिलाने का माध्यम नहीं दलाल की भूमिका में है. अधिकारों का केन्द्रीकरण इन्हीं में है. नेता तो बदलता है किन्तु प्रशासनिक अधिकारी सेवाकाल में ही नहीं, सेवा निवृत्ति पर्यंत ऐश करता है.</p>
<p> </p>
<p>सबसे पहला कदम इन अधिकारियों और सांसदों के वेतन, भत्ते, सुविधाएँ और अधिकार कम करना हो तभी राहत होगी.</p>
<p> </p>
<p>जन प्रतिनिधियों को स्वतंत्रता के तत्काल बाद की तरह जेब से धन खर्च कर राजनीति करना पड़े तो सिर्फ सही लोग शेष रहेंगे.</p>
<p> </p>
<p>चुनाव दलगत न हों तो चंदा देने की जरूरत ही न होगी. कोई उम्मीदवार ही न हो, न कोई दल हो. ऐसी स्थिति में चुनाव प्रचार या प्रलोभन की जरूरत न होगी. अधिकृत मतपत्र केवल कोरा कागज़ हो जिस पर मतदाता अपनी पसंद के व्यक्ति का नाम लिख दे और मतपेटी में डाल दे. उम्मीदवार, दल, प्रचार न होने से मतदान केन्द्रों पर लूटपाट न होगी. कोई अपराधी चुनाव न लड़ सकेगा. कौन मतदाता किस का नाम लिखेगा कोई जन नहीं सकेगा. हो सकता है हजारों व्यक्तियों के नाम आयें. इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. सब मतपत्रों की गणना कर सर्वाधिक मत पानेवाले को विजेता घोषित किया जाए. इससे चुनाव खर्च नगण्य होगा. कोई प्रचार नहीं होगा, न धनवान मतदान को प्रभावित कर सकेंगे.</p>
<p> </p>
<p>चुने गये जन प्रतिनिधियों के जीवन काल का विवरण सभी प्रतिनिधियों को दिया जाए, वे इसी प्रकार अपने बीच में से मंत्री चुन लें. सदन में न सत्ता पक्ष होगा न विपक्ष, इनके स्थान पर कार्य कार्यकारी पक्ष और समर्थक पक्ष होंगे जो दलीय सिद्धांतों के स्थान पर राष्ट्रीय और मानवीय हित को ध्यान में रखकर नीति बनायेंगे और क्रियान्वित कराएँगे.</p>
<p> </p>
<p>इसके लिये संविधान में संशोधन करना होगा. यह सब समस्याओं को मिटा देगा. हमारी असली समस्या दलतंत्र है जिसके कारण विपक्ष सत्ता पक्ष की सही नीति का भी विरोध करता है और सत्ता पक्ष विपक्ष की सही बात को भी नहीं मानता.</p>
<p> </p>
<p>भारत के संविधान में अल्प अवधि में दुनिया के किसी भी देश और संविधान की तुलना में सर्वाधिक संशोधन हो चुके हैं, तो एक और संशिधन करने में कोई कठिनाई नहीं है. नेता इसका विरोध करेंगे क्योकि उनके विशेषाधिकार समाप्त हो जायेंगे किन्तु जनमत का दबाब उन्हें स्वीकारने पर बाध्य कर सकता है. </p>
<p> </p>
<p>ऐसी जन-सरकार बनने पर कानूनों को कम करने की शुरुआत हो. हमारी मूल समस्या कानून न होना नहीं कानून न मानना है. राजनीति शास्त्र में 'लेसीज़ फेयर' सिद्धांत के अनुसार सर्वोत्तम सरकार न्यूनतम शासन करती है क्योंकि लोग आत्मानुशासित होते हैं. भारत में इतने कानून हैं कि कोई नहीं जनता, हर पाल आप किसी न किसी कानून का जने-अनजाने उल्लंघन कर रहे होते हैं. इससे कानून के अवहेलना की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गयी है. इसका निदान केवल अत्यावश्यक कानून रखना, लोगों को आत्म विवेक के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता देना तथा क्षतिपूर्ति अधिनियम (law of tort) को लागू करना है.</p>
<p> </p>
<p>क्या अन्ना और अन्य नेता / विचारक इस पर विचार करेंगे?????????????...</p>
<p> </p>
<p>Acharya Sanjiv Salil</p>
<p> </p>
<p>**********</p>
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<p> </p> अन्ना बनाम अनशनtag:openbooks.ning.com,2011-08-21:5170231:Topic:1326982011-08-21T20:23:31.361Zsujeet kumar yadavhttp://openbooks.ning.com/profile/sujeetkumaryadav
<p>संविधान के अनुरूप बन रहे लोकपाल बिल को जल्द पास करने के लिए अगर ये अनशन है, तो अच्छा प्रयास है |</p>
<p>याद रखें, ये बिल हमारे आपके द्वारा चुने गये लोकतंत्र के प्रतिनिधियों की सहमति से ही पास होगा|</p>
<p>सभी लोग दिमाग़ लगाओगे तो एक अरब अनशन होगा |</p>
<p>किसी के दवाब मे आ कर लिया गया निर्णय देश / समाज के लिए नुकसान दायक हो सकता है!लोकतंत्र मे दवाब मे नहीं , सहमति से निर्णय लिए जाते हैं|</p>
<p>अगर आप ये सोचते हो की ये सांसद ही ग़लत हैं, भ्रष्ट्राचारी हैं |</p>
<p>तो दोषी कौन ?</p>
<p>हम…</p>
<p>संविधान के अनुरूप बन रहे लोकपाल बिल को जल्द पास करने के लिए अगर ये अनशन है, तो अच्छा प्रयास है |</p>
<p>याद रखें, ये बिल हमारे आपके द्वारा चुने गये लोकतंत्र के प्रतिनिधियों की सहमति से ही पास होगा|</p>
<p>सभी लोग दिमाग़ लगाओगे तो एक अरब अनशन होगा |</p>
<p>किसी के दवाब मे आ कर लिया गया निर्णय देश / समाज के लिए नुकसान दायक हो सकता है!लोकतंत्र मे दवाब मे नहीं , सहमति से निर्णय लिए जाते हैं|</p>
<p>अगर आप ये सोचते हो की ये सांसद ही ग़लत हैं, भ्रष्ट्राचारी हैं |</p>
<p>तो दोषी कौन ?</p>
<p>हम |</p>
<p>आओ इस पर विचार करें, कैसे हम अपने देश के लिए एक अच्छा जनप्रतिनिधि चुनें !</p>
<p>एक स्वच्छ लोकतंत्र बनाएँ !</p>
<p>आप से अनुरोध है,</p>
<p>भारतीय संविधान का आदर करें,</p>
<p>माननीय अन्ना हज़ारे की जनलोकपाल पर बच्चों सी ज़िद्द का साथ ना दें | कोई भी बिल ब्रम्हा की लकीर नही होती, संसद मे प्रस्तुत लोकपाल बिल को आगे अनुभवों के आधार पर correction के लिए विकल्प है |</p>
<p>संयम रखें |</p>
<p>ये हमारा प्यारा विश्व प्रसिद्ध लोकतंत्र है कोई मिश्र या लीबिया नही !</p> दहेज प्रथा: बीच बहस मेंtag:openbooks.ning.com,2011-08-02:5170231:Topic:1191152011-08-02T13:48:42.914ZRohit Sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/RohitSharma
<p>दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई तार्किक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:<br></br>1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से…</p>
<p>दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई तार्किक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:<br/>1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से ऐसे तबकों की संख्या कम है. फलतः एक ही नौकरी करने वाले या सम्पन्न लड़के लिए अनेक रिश्ते आते है. ऐसे में दहेज की मांग ही उसे किसी एक से जुड़ने में मदद देती है. इसके उलट जिस लड़के के पास नौकरी नहीं है, उसके यहां लड़की वाले झांकते तक नहीं, भले ही वह बिना दहेज के शादी करने पर सहमत हों, लोग उसकी खिल्ली ही उड़ाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो. अर्थात्, दहेज नहीं लेना सिर्फ उसे ही शोभा देता है जिसे पास अथाह दौलत हो, उसे नहीं जिसे पास दौलत नहीं हो. <br/>2. कानून में दर्ज है, पिता के सम्पत्ति में बेटी का भी हिस्सा होता है. जब लड़की शादी कर दूसरे घर चली जाती है तब उसे अपना हिस्सा ही दहेज के रूप में मिलता है. अगर पिता के सम्पत्ति में बेटी को हिस्सा मिलना जायज है तो उसे अपना मिले हिस्सों को घृणित भाव से देखना किस नियम के तहत नाजायज है ?<br/>3. दहेज प्रथा खासकर उन तबके के लड़कों के लिए वरदान बन कर सामने आती है, जिसके पास अथाह दौलत नहीं है चाहे वह विरासत से प्राप्त हो या खुद की कमाई से (नौकरी वगैरह करके). दुर्भाग्य से ऐसे तबकों से संख्या काफी है.<br/> मुझे लगता है कि उन अनेक कारणों में से कुछ कारण ही गिना पाया हूँ जिसकारण यह प्रथा समाज में जड़ जमाये हुये है और सामान्य तबकों के लिए दुल्हन की व्यवस्था हो पाती है, अन्यथा यह कोई दूर की बात नहीं है जब अनेक गरीब आदमी को दुल्हन प्राप्त नहीं हो पाती थी और आजीवन कुंवारे रहने का दंश झेलते थे. तब कोई लड़की बाला क्यों नहीं उनके लिए दुल्हन के लिए सोचता था ? शायद गरीब होना उनके लिए अभिशाप था. जिस कारण हर कोई जीवनभर उसका खिल्ली उड़ाता रहता था. मैं समझता हूँ उन लोगों के लिए दहेज वरदान है.</p> अन्ना हजारे जी हम आपके साथ हैं ,tag:openbooks.ning.com,2011-04-08:5170231:Topic:678932011-04-08T07:47:11.657ZRash Bihari Ravihttp://openbooks.ning.com/profile/ravikumargiri
<div><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868829007?profile=original"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868829007?profile=original" class="align-full" width="627"/></a> दोस्तों, अन्ना हजारे जी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने का जो बीड़ा उठाया हैं, मैं उसका समर्थन करते हुए OBO के द्वारा पूरे देश की जनता को आवाह्न करता हूँ की आप भी अन्ना साहब के कदम से कदम मिलकर चले और अपने बहुमूल्य बिचार यहाँ रखे !</div>
<div><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868829007?profile=original"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868829007?profile=original" class="align-full" width="627"/></a> दोस्तों, अन्ना हजारे जी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने का जो बीड़ा उठाया हैं, मैं उसका समर्थन करते हुए OBO के द्वारा पूरे देश की जनता को आवाह्न करता हूँ की आप भी अन्ना साहब के कदम से कदम मिलकर चले और अपने बहुमूल्य बिचार यहाँ रखे !</div> वंदे~मातरम :::tag:openbooks.ning.com,2010-12-19:5170231:Topic:416842010-12-19T14:53:13.427ZJogendra Singh जोगेन्द्र सिंहhttp://openbooks.ning.com/profile/JogendraSingh
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<li><strong><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868827180?profile=original" target="_self"><img class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868827180?profile=original" width="300"></img></a> <span style="font-size: large;">वंदे~मातरम</span> :::</strong></li>
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<li>ये सिर्फ दो शब्द मात्र नहीं हैं जिन्हें जैसे चाहा मुँह खोल कर उगल दिया..... बल्कि इसके मायनों को समझना , उन्हें ह्रदय से अंगीकार करना और फिर इन शब्दों को सार्थक बनाने के लिए मातृभूमि पर हो रही हर गन्दगी से उसे मुक्त करवाने के कार्य पर लग जाना... तब मुँह से वंदे~मातरम निकाला जाना…</li>
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<li><strong><a target="_self" href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868827180?profile=original"><img class="align-right" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2868827180?profile=original" width="300"/></a><span style="font-size: large;">वंदे~मातरम</span> :::</strong></li>
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<li>ये सिर्फ दो शब्द मात्र नहीं हैं जिन्हें जैसे चाहा मुँह खोल कर उगल दिया..... बल्कि इसके मायनों को समझना , उन्हें ह्रदय से अंगीकार करना और फिर इन शब्दों को सार्थक बनाने के लिए मातृभूमि पर हो रही हर गन्दगी से उसे मुक्त करवाने के कार्य पर लग जाना... तब मुँह से वंदे~मातरम निकाला जाना चाहिए.....</li>
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<li><strong>आप लोग क्या कहते हैं इस बारे में...? ? ?</strong></li>
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<li><strong>जोगी</strong> :)))</li>
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